एक साल की उम्र में ही तोड़ दिया 4324 शिशुओं ने दम
माताओं की उजड़तीं कोख की किसी को नहीं चिंता
जैसा की हमने पिछली खबर में देखा था, चंद्रपुर जिले में बाल कल्याण के असंख्य दावें करने वाली सरकारों के प्रयास विफल होने के चलते यहां बीते 10 सालों में 3 लाख 81 हजार 915 बच्चे कुपोषण से ग्रस्त पाए गए। इनमें से 18 हजार 291 बच्चे तीव्र कुपोषित मिले। इस गंभीर मुद्दे के मद्देनजर जब हमने बालमृत्यु की दिशा में प्रशासनीक आंकड़ों पर गौर किया तो गत 10 वर्षों में यहां 0 से 5 आयुसीमा वाले 5396 बच्चों की मौत होने की सनसनीखेज जानकारी मिली। इनमें से 4324 शिशु ऐसे हैं, जिन्होंने अपना जीवनकाल एक वर्ष भी पूरा नहीं किया। बालमृत्यु के चलते जहां स्वास्थ्य व्यवस्था कटघरे में हैं, वहीं सरकार की तमाम बाल कल्याणकारी योजनाओं पर सवाल उठना लाजिम है। इस समस्या की ओर जिले के पालकमंत्री सुधीर मुनगंटीवार को विशेष ध्यान देने की जरूरत है।
कब मिटेगा बालमृत्यु के आंकड़ों का कलंक ?
कुपोषण और बालमृत्यु के संदर्भ में विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से अनेक मार्गदर्शक तत्वों पर काम किया जाता रहा है। हालांकि यह भी सच है कि पूर्व के वर्षों की तुलना में कुपोषण और बालमृत्यु के आंकड़ों को कम करने में सरकार को कामयाबी मिली है। इसके बावजूद स्थितियों को संतोषजनक नहीं कहा जा सकता। जिले में हर साल डेढ़ सौ से सात सौ के करीब नन्हें बच्चों का मर जाना सामान्य बात नहीं है। जिन माता-पिताओं ने अपने बच्चों को खोया हैं, वे ही इसका दर्द अच्छी तरह से समझ सकते हैं। आवश्यकता है कि जिले से कुपोषण और बालमृत्यु के कलंक को मिटाया जाएं।
काल के गाल में समा रहे मासूम
प्रशासनीक रिपोर्ट के अनुसार जिले में गत 10 वर्षों में 0 से 5 आयुसीमा वाले 5396 बच्चों की मौत दिल दहला देने वाली है। इनमें से भले ही 4324 शिशुओं ने एक वर्ष आयु पूरे होते-होते दम तोड़ दिया हो, लेकिन ऐसे 1,072 बच्चे भी मौत के साये में काल का गाल बन गए जो एक वर्ष से 5 वर्ष की उम्र तक जी पाएं थे। जिले के प्रशासनीक प्रयासों की बात करें तो कागजों व भाषणों में बाल कल्याण के दावे बड़े ही सुनहरे लगते हैं। जिले में गत 10 सालों में कांग्रेस के नेता विजय वडेट्टीवार ने करीब 2 वर्ष पालकमंत्री का पद संभाला और शेष 8 वर्ष भाजपा नेता सुधीर मुनगंटीवार ने पालकमंत्री पद की कमान संभाली। कांग्रेस व भाजपा दोनों ने सत्ता भोगी है। फिर भी कुपोषण एवं बालमृत्यु थमने का नाम ही नहीं ले रहा है।
सरकारी आंकड़ों से सबक लेने की आवश्यकता
सरकारी
रिपोर्ट और राजनीतिक दलों के दावों के बीच फर्क साफ तौर पर दिखाई पड़ता है।
प्रशासनीक रिपोर्ट में दर्ज आंकड़ों से पूरी सच्चाई का पर्दाफाश हो रहा है। वर्ष
2013 से वर्ष 2023 के दौरान के सरकारी आंकड़ों के गहन अध्ययन के बाद हमने इसकी
समीक्षा की। इन 10 वर्षों के आंकड़ों में कुपोषण व बालमृत्यु को खत्म करने की दिशा
में कोई ठोस कदम उठाने जैसी कोई बात नजर नहीं आ रही है। यह जिले के विकास का नहीं,
बल्कि अधोगति का प्रतीक बनता जा रहा है। सालाना आंकड़े निम्नलिखित है।
वर्ष 2013 -370, – 216(शिशु)
वर्ष 2014 -419, – 239(शिशु)
वर्ष 2015 -450, – 242(शिशु)
वर्ष 2016 -496, – 417(शिशु)
वर्ष 2017 -787, – 699(शिशु)
वर्ष 2018 -644, – 564(शिशु)
वर्ष 2019 -686, – 605(शिशु)
वर्ष 2020 -703, – 625(शिशु)
वर्ष 2021 -195, – 144(शिशु)
वर्ष 2022 -502, – 463(शिशु)
वर्ष 2023 -144, – 110(शिशु)
वर्ष 2030 तक कैसे रुकेंगी बालमृत्यु ?
शून्य से 5 वर्ष आयुसीमा वाले बच्चों की मौत को बालमृत्यु की व्याख्या में शामिल किया जाता है। नवजात मृत्यु दर और शिशु मृत्यु दर में कमी लाने के लिए संयुक्त राष्ट्र के कई व सतत विकास लक्ष्यों में निर्धारित किया गया है। वर्ष 2030 तक इन मौतों को रोकने की योजना व लक्ष्य को तय किया गया है। इन मौतों को समाप्त करने के लिए सभी देशों का लक्ष्य दिया गया है। हालांकि यह बात सच है कि बीते 40 वर्षों में बालमृत्यु दर में कमी आई है।
बाल मृत्यु टालने के कारगर कदम
आमतौर पर नवजात शिशु की मृत्यु, समय से पहले जन्म या जन्म दोषों के कारण होती है। कुछ मुख्य कारणों में समय से पहले जन्म, एसआईडीएस, जन्म के समय कम वजन, कुपोषण और संक्रामक रोग शामिल हैं। निमोनिया, अंतर्गर्भाशयी संबंधी घटनाएं, नवजात सेप्सिस, दस्त, मलेरिया, कुपोषण आदि कारण इन मौतों के लिए जिम्मेदार होते हैं। पांच साल से कम उम्र की लगभग आधी मौतें अल्पपोषण के कारण भी होती हैं। बच्चों को पोषक आहार समेत उचित देखभाल व चिकित्सा सुविधा मिलने पर इसे रोका जा सकता है। बच्चों को टीके लगवाना, एंटीबायोटिक्स, सूक्ष्म पोषक, अनुपूरण, कीटनाशक-उपचारित बिस्तर जाल, बेहतर पारिवारिक देखभाल और स्तनपान प्रथाओं के प्रभावी उपायों से इससे बचा जा सकता है। माताओं को सशक्त बनाना, बुनियादी सेवाओं तक पहुंचने में वित्तीय और सामाजिक बाधाओं को दूर करना, गरीबों के लिए महत्वपूर्ण सेवाओं की आपूर्ति करना, स्वास्थ्य प्रणालियों की जवाबदेही बढ़ाना आदि कारगर कदम हो सकते हैं।