■ इंकम टैक्स विभाग की
जांच होगी तो बेनकाब होंगे अनेक नेता
■ शामकांत थेरे, जावेद
सिद्दीकी तथा कांग्रेस-भाजपा नेताओं की रेत ठेकों में पार्टनरशिप की चर्चा जोरों
पर
■ जब्त पोकलैंड की
हेराफेरी, अदला-बदली करने का क्या है मकसद ?
@चंद्रपुर
चंद्रपुर
जिले में नेताओं का भी अमृतकाल शुरू है। अब यह हैरत की बात नहीं है कि रेत ठेकों
में कांग्रेस और भाजपा के नेता मिलकर मलाई खा रहे हैं। लाखों-करोड़ों के रेत ठेकों
की नीलामी में जिस तरह से राजनेताओं का आपसी भाई-चारा चल पड़ा है, उससे आम
कार्यकर्ताओं को भी सबक लेना चाहिये। फिलहाल तो चंद्रपुर का उपविभागीय अधिकारी
कार्यालय, चंद्रपुर तहसील कार्यालय और जिलाधिकारी कार्यालय पर रेत तस्कर हावी नजर
आ रहे हैं। क्योंकि यह स्पष्ट दिख रहा है कि 30 जनवरी को घुग्घुस के नकोड़ा स्थित
वर्धा नदी के रेत घाट पर अवैध रेत उत्खनन व परिवहन करते हुए SDM ने वाहन, मशीन व
रेत संग्रह जब्त किया। परंतु बीते 9 दिनों में न तो रेत तस्करों के खिलाफ अपराध
दर्ज किया जा सका और न ही संबंधितों पर कोई जुर्माना लगाया जा सका। और तो और
राजस्व विभाग जब्त वाहनों के मालिकों का नाम भी उजागर करने के लिए तैयार नहीं है।
इससे यह साफ होता है कि कलेक्ट्रेट व राजस्व प्रशासन पर रेत तस्करों व राजनेताओं
का दबाव कितना अधिक है ?
SDM
ने क्यों जारी की अधूरी जानकारी वाली प्रेसनोट ?
घुग्घुस कांग्रेस के
पूर्व शहराध्यक्ष जावेद आलम सिद्दीकी ने बीते माह नकोड़ा घाट नीलामी में खरीदा था। गत
30 जनवरी 2023 को चंद्रपुर के उपविभागीय अधिकारी एम. मुरुगानंथम ने कार्रवाई करते
हुए रेत के अवैध उत्खनन व परिवहन के आरोप में एक जेसीबी, एक पोकलैंड मशीन व करीब 40
ब्रास रेत जब्त किया था। 31 जनवरी की शाम प्रशासन ने एक प्रेसनोट जारी कर इसकी
जानकारी मीडिया को दी। लेकिन इस प्रेसनोट में SDM ने रेत तस्कर का नाम और वाहनों
के नंबर आदि की जानकारी नहीं दी। इस अधूरी जानकारी वाली प्रेसनोट को SDM को क्यों
जारी करना पड़ा। इसके बाद जब मीडिया ने संपर्क कर सही जानकारी का पता लगाने की
कोशिश की तो उन्हें इंस्ट्रक्शन है, रेत तस्करों के नाम घोषित न करें, इस तरह का
जवाब क्यों दिया जा रहा है ? ऐसे अनेक सवाल आज भी इस मामले पर पर्दा डाले हुए है।
पोकलॅन की अदला-बदली पर
राजस्व विभाग चुप क्यों ?
2 फरवरी को राजस्व
विभाग की ओर से घुग्घुस थाने में वाहन को जमा कराने की जानकारी दी गई। लेकिन 3
तारीख को एक बड़े वाहन के ट्रॉली पर चंद्रपुर मार्ग से नई(जब्ती वाली) पोकलैंड मशीन
थाने में लायी गई। यह मशीन वर्धा नदी के नकोड़ा रेत घाट मार्ग से घुग्घुस थाने तक
क्यों नहीं लायी गई ? जबकि इस नई मशीन को बदलने के लिए एक पुरानी व कबाड़ मशीन को
रेत घाट के घटना स्थल पर क्यों रखा गया ? असल में मीडिया के दबाव के चलते घटना
स्थल से गायब कर दी गई नई व असली मशीन को घुग्घुस थाने में चंद्रपुर मार्ग से लाकर
इसे जमा कराना पड़ा। इसके वीडियो सबूत उपलब्ध है। जब्त पोकलॅन मशीन का नंबर 205 था,
बाद में इसे बदलकर रेत घाट पर 140 क्रमांक की मशीन को रखा गया। किंतु यह मामला
सार्वजनिक होने के कारण और इस पर मीडिया की नजर होने के चलते संबंधितों को असली व
नई पोकलैंड मशीन को घुग्घुस थाने में जमा कराना पड़ा।
रेत तस्करों से
जुर्माना वसूली में देरी क्यों ?
अब सवाल यह उठता है कि
जब्ती के 9 दिनों बाद भी रेत तस्करों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई क्यों नहीं की गई
? संबंधित रेत तस्करों के खिलाफ अपराध दर्ज क्यों नहीं किया गया ? प्रशासन की ओर से
रेत तस्करों से जुर्माना वसूल करने की नीति में देरी क्यों की जा रही है ? ऐसे
तमाम तरह के सवालों के चलते राजस्व विभाग की कार्यप्रणाली संदेह के घेरे में घिर
रही है।
भाजपा-कांग्रेस
भाई-भाई, मिल-जुलकर टेंडर लेने की नीति अपनाई ?
सूत्रों से मिली
जानकारी के अनुसार आननफानन में राजस्व विभाग की ओर से रेत तस्करों के वाहनों को
जब्त करने की कार्रवाई तो की गई, लेकिन बाद में इसके पीछे काम कर रहे राजनेताओं का
दबाव अब भारी पड़ रहा है। क्योंकि कहा जा रहा है कि इस रेत घाट के टेंडर में एक
राजनेता के लाखों रुपये लगे हैं। वे रेत तस्करों के पार्टनर के तौर पर इस अवैध
व्यवसाय में लिप्त है। उनके माध्यम से नई पोकलैंड मशीन को किराये पर कार्य स्थल पर
लाया गया था। इसलिए पोकलैंड मशीन की हेराफेरी करने की कोशिश की गई। कांग्रेस के
तहसील अध्यक्ष शामकांत थेरे की इस रेत घाट की नीलामी में क्या भूमिका है ? उनके
वित्तीय ट्रांजैक्शन की जांच करेंगे तो शायद यह स्पष्ट हो जाएगा कि जावेद सिद्दीकी
द्वारा खरीदा गया यह रेत घाट अनेक राजनेताओं के धनराशि के बलबूते पर संचालित हो
रहा है। यदि इंकम टैक्स विभाग इस मामले की जांच करता है तो अनेक नाम उजागर होने के
आसार है। इसकी जांच में भाजपा नेताओं के नाम भी उजागर हो सकते हैं।
राजस्व विभाग को किसका
डर ?
बहरहाल इस मामले में राजस्व
विभाग के आला अधिकारी कुछ भी बताने के लिए तैयार नहीं है। अधिकारियों को कॉल करने
पर वे अब कॉल रिसिव करने से भी डर रहे हैं। यदि कॉल रिसिव कर लें तो वे मीडिया के
सवालों का संतोषजनक जवाब न देते हुए टोल-मटोल जवाब देकर अपना पल्ला झाड़ने की कोशिश
कर रहे हैं। राजस्व विभाग पर कहीं राजनेताओं का दबाव अथवा डर तो नहीं है, यह सवाल
उपस्थित होने लगा है।